रिपोर्ट /सहसंपादक विनायक गिरि अमेठी सुमन न्यूज रामनगर
एक सरस्वती वंदना……..
शारदे मां मेरी शारदे मां।
अपने शब्दों का तू सार दे मां।
(1)बंद…..
शब्द का तुम हो श्रृंगार मईया।
काव्य का तुम हो आधार मईया।
अपनी गोदी उठा लो मुझे मां,
मुझको बेटे सा दो प्यार मईया।
मूढ़मति हूं मैं नादान बालक,लेखनी में नवल धार दे मां।
शारदे मां मेरी शारदे मां…………शारदे शारदे शारदे मां ।
(2)बंद…..
मेरे सपनों का विश्वास तुम हो।
ज्ञान का पुण्य इतिहास तुम हो।
मेरे सिर पे रखो हाथ मां अब,
मैं हूं कण मात्र आकाश तुम हो।
कंठ में निज कृपा की किरण रख,अपनी वीणा की झंकार दे मां।
शारदे मां मेरी शारदे मां…………शारदे शारदे शारदे मां ।
*(3)बंद…..*
**तुम निराला की हो उस कृपा में।*
*तुम हो पहले कवि सरहपा में।*
**कवियों पर ज्ञान बरसा दो मां तुम,*
*वंदना कवि करें हर दफा में।*
**आये नव जागरण मातु फिर से, बदल करके तू संसार दे मां।*
शारदे मां मेरी शारदे मां…………शारदे शारदे शारदे मां ।
कवि आकाश “उमंग”