देश के लिए हैं जीते देश लिए हैं मरते, देश हित शीश कटने की है परंपरा : छंद

 रिपोर्ट /सहसंपादक विनायक गिरि अमेठी सुमन न्यूज रामनगर 

देश के लिए हैं जीते देश लिए हैं मरते,
देश हित शीश कटने की है परंपरा।

शत्रु जब वक्ष पर वार करता है तब,
देश के वीरों में लड़ने की है परंपरा।

देश का तिरंगा कभी झुकने ना पाये बस,
इस लिए मर मिटनें की है परंपरा।

धड़ से अलग शीश होता है हो जाये किंतु,
सिर को यहां न झुकने की है परंपरा।

सबके लिए था जान से महान किन्तु अब,
वक्त पर वक्त  जैसे बीत सा गया हूँ मैं।

राधा और मीरा ने किया था नंदलाल से जो,
बन ऐसी निःस्वार्थ प्रीत सा गया हूँ मैं।

जिसने भी चाहा मुझे होंठो पे सजा लिया औ,
कंठ के स्वरों से गाया गीत सा गया हूँ मैं।

जिन्दगी के साथ-साथ जिन्दगी बदल डाली,
जिन्दगी में जिन्दगी से जीत सा गया हूँ मैं।
                          कवि आकाश “उमंग”

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