बिहार की राजनीति में इन दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संभावित कदम को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। सियासी हलकों में इस बात की चर्चा है कि वह जल्द ही मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने डिप्टी और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव को सौंप देंगे। इसके पीछे दलील दी जा रही है कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी के विजयी रथ को रोकने के मकसद से तैयार विपक्षी दलों के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (INDIA) की तरफ से अगले लोकसभा चुनाव के लिए संयोजक पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
करीब 18 वर्षों से बिहार की गद्दी पर कायम नीतीश कुमार के लिए किसी भी तरह की भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी। वह भी संयोजक जैसे पद के बदले में मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़ने की बात तो और भी अधिक काल्पनिक लगती है। वह भी ऐसे समय में जब इंडिया गठबंधन अपने दो प्रमुख ध्रुव एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है।
गहलोत ने सीएम पद बचाने के लिए ठुकारई थी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी
नीतीश कुमार के संभावित कदम के बारे में किसी भी तरह का अनुमान लगाने से पहले हमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के उस फैसले के बारे में भी विचार करना चाहिए, जो उन्होंने कांग्रेस जैसी देश की सबसे पुरानी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले लिया था। इस चुनाव के लिए उन्होंने लगभग पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन उससे पहले कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं के द्वारा ‘एक व्यक्ति, एक पद’ की प्रमुखता से वकालत की गई। ऐसे में गहलोत को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ सकती थी। हालांकि, उन्होंने ऐसा नहीं किया और खुद को कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव से अलग कर लिया था। उन्होंने अपनी सीएम की कुर्सी को सुरक्षित रखा।